देश की राजधानी दिल्ली समेत पूरे भारत में प्रदूषण की वजह से न केवल लोग बीमार हो रहे हैं, बल्कि कैंसर जैसी गंभीर रोगों के चलते इससे जानें भी जा रही हैं। दिल्ली में जहां 40 फीसद से अधिक बच्चों के फेफड़ों के खराब होने की बात पहले ही सामने आ चुकी है, वहीं ताजा सर्वेक्षण में दावा किया गया है कि धूमपान (smoking) करने वालों और नहीं करने वाले दोनों ही तरह के लोगों में लंग कैंसर के मामले एक समान रूप से सामने आ रहे हैं। दिल्ली ही नहीं, गुरुग्राम, फरीबादाबाद, गाजियाबाद और गुरुग्राम समेत देश के 15 शहर हैं, जहां पर लोग हवा के रूप में जहर पी रहे हैं।
खासकर दिल्ली में एक ओर प्रदूषित हवा हर समय विद्यमान रहती है, तो ऐसे में सिगरेट पीने के दौरान आसपास रहने वालों को भी उतनी ही तेजी से फेफड़ों के कैंसर होने की संभावना भी बढ़ रही है। दिल्ली के नामी अस्पताल सर गंगा राम अस्पताल के सेंटर फॉर चेस्ट सर्जरी के चेस्ट सर्जन और लंग केयर फाउंडेशन की तरफ से करवाई गए एक अध्ययन में ये चौंकाने वाले नतीजे सामने आए हैं।
विशेषज्ञों का मानना है कि बेशक आमतौर पर माना जाता है कि धूमपान करने वाले लोग ही ज्यादातर फेफड़े के कैंसर की चपेट में आते हैं। कुछ हद तक यह बात सही भी है पर सर गंगाराम का यह सर्वे इस मिथक को तोड़ रहा है। जाहिर है कि इस सर्व से यह बात भी सामने आई है कि अब प्रदूषण भी उतना ही नुकसान पहुंचा रहा है, जितना धूमपान करना। यही वजह है कि प्रदूषण के कारण लोग फेफड़े के कैंसर से पीड़ित हो रहे हैं।
दरअसल, पिछले 30 सालों के दौरान हुई लंग कैंसर सर्जरी (Lung Cancer Surgery) की जांच में खुलासा हुआ है कि 3 दशक पहले 1988 में 10 में 9 लोगों की फेफड़ों की सर्जरी ऐसे लोगों की होती थी जो धूम्रपान (Smoking) करते थे। वहीं, दूसरी ओर एक साल पहले वर्ष 2018 में लंग कैंसर की सर्जरी का अनुपात 5:5 हो गया। इसका मतलब यह है कि 5 स्मोकिंग करने वाले और 5 नॉन स्मोकर हैं।
इससे पहले हुए एक सर्वे के मुताबिक, मार्च 2014 से जून 2018 के बीच इलाज के लिए पहुंचे फेफड़े के कैंसर से पीड़ित 150 मरीजों पर अध्ययन किया गया है। इसमें पाया गया कि 50 फीसद मरीज धूम्रपान करते थे जबकि 50 फीसद नहीं करते थे। इन मरीजों के परिवार में भी कोई धूम्रपान नहीं करता था, यानी ये मरीज सेकेंड हैंड स्मोकर भी नहीं थे।
अध्ययन में पाया गया कि 21 फीसद मरीजों की उम्र 50 साल से कम थी। इनमें से 3.3 फीसद मरीजों की उम्र 21 से 30 वर्ष के बीच और 5.3 फीसद की उम्र 31 से 40 वर्ष के बीच थी। पहले की तुलना में महिला मरीजों की संख्या भी बढ़ी है। 33.3 फीसद मरीजों की उम्र 51-60 वर्ष व 30 फीसद मरीजों की उम्र 61-70 वर्ष थी। पुरुष व महिला मरीजों का अनुपात 3.8:1 पाया गया।
जन्म से ही 10 सिगरेट के बराबर प्रदूषित हवा ले रहे
गंगाराम अस्पताल के डॉक्टरों का कहना है कि देश में फेफड़े के कैंसर के हर साल 60-70 हजार मामले सामने आते हैं। दिल्ली सहित कई शहरों में प्रदूषण इतना बढ़ गया है सिगरेट पीने या नहीं पीने का अंतर मिट गया है।
बड़े प्रदूषित शहरों की स्थिति तो यह है कि जन्म के बाद से ही बच्चा 10 सिगरेट के बराबर प्रदूषित हवा सांस के रूप में ले रहा है। इस सच को स्वीकारने में कोई गुरेज नहीं होना चाहिए कि दिल्ली जैसे प्रदूषित शहर में आपका बच्चा भी सिगरेट पीने लगा है। डॉक्टरों का यह भी कहना है कि धूमपान रोकने के साथ ही यदि प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए कारगर कदम नहीं उठाए गए तो इसके भयावह नतीजे होंगे।
डराते हैं यह आंकड़े
पहले करीब 90 फीसद लोगों को यह बीमारी धूमपान के कारण होती थी। बाद में यह ग्राफ गिरकर 70-80 फीसद पर आया। हमारे अध्ययन में धूमपान करने व नहीं करने वालों का अंतर खत्म होता दिख रहा है। यह आंकड़ा डरावना है। प्रदूषण के कारण लोगों का फेफड़ा काला पड़ता जा रहा है।
इससे भी ज्यादा चिंताजनक आंकड़े ये हैं कि लंग कैंसर की सर्जरी करवाने वाले 70 फीसद लोगों की उम्र 50 साल से कम है औऱ वे सभी लोग नॉन स्मोकर हैं। 30 साल से कम के कम उम्र वालों में एक भी व्यक्ति स्मोकर नहीं था।
अध्ययन में यह बात भी सामने आई है कि जो लोग धूमपान छोड़ चुके थे उन्हें भी स्मोकर की श्रेणी में ही रखा गया था। सर गंगा राम हॉस्पिटल में सेंटर फॉर चेस्ट सर्जरी और इंस्टिट्यूट ऑफ रोबॉटिक सर्जरी के कंसल्टेंट डॉ हर्थ वर्धन पुरी की मानें तो यह अध्ययन यह किया गया, क्योंकि डॉक्टरों ने पाया कि लंग कैंसर की सर्जरी कराने वाले ज्यादातर मरीज बेहद युवा और नॉन स्मोकर थे।
वहीं अब प्रदूषण से मौत के आंकड़े भी सामने आए हैं। एक सर्वेक्षण में दावा किया गया था कि भारत में वायु प्रदूषण के कारण 2017 में 12 लाख लोगों की मौत हुई थी। यह आंकड़ा इसी साल अप्रैल में जारी हुआ था, जो एक वैश्विक शोध में प्रकाश में आया है। शोध-रिपोर्ट 'स्टेट ऑफ ग्लोबल एयर-2019' के मुताबिक, वर्तमान में वायु प्रदूषण के उच्च स्तर के कारण दक्षिण एशिया में बच्चों की औसत जीवन प्रत्याशा में ढाई साल की कमी आएगी, जबकि वैश्विक जीवन प्रत्याशा में 20 महीने की कमी आएगी।
गौरतलब है कि दिल्ली और एनसीआर के क्षेत्रों में प्रदूषण इतना ज्यादा बढ़ गया था कि फिरोजशाह कोटला मैदान में खेलने आई श्रीलंका की टीम को मैच के दौरान मास्क लगाना पड़ा था।
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