कश्मीर में… क्या, कब व कैसे सरीखे सवालों के जवाब निकट भविष्य में मिल ही जाएंगे। लेकिन इन सवालों को जन्म देनेवाली कार्रवाई से मन प्रफुल्लित है।
1947-48 में हुए विभाजन के पश्चात सम्भवतः यह पहला अवसर है जब यह नजारा देख सुन रहा हूं कि जम्मू कश्मीर, विशेषकर कश्मीर घाटी में राजनीतिक नकाब पहनकर घूमने वाले “साम्प्रदायिक-मज़हबी-कश्मीरी” गुंडे/डकैत/हत्यारे/आतंकी टीवी कैमरों के सामने किसी मरियल कुत्ते की तरह डर से थरथर कांप, गिड़गिड़ा व रहम और शांति की भीख मांग रहे हैं।
जबकि उसी जम्मू कश्मीर में रविंद्र रैना नाम का भारतीय अपने असंख्य साथियों सहयोगियों के साथ किसी राष्ट्रवादी सिंह की तरह दहाड़ व झूम रहा है।
उल्लेखनीय है कि कश्मीर घाटी में राजनीतिक नकाब पहनकर घूमने वाले “साम्प्रदायिक-मज़हबी-कश्मीरी” आतंकी गैंग्स की सुरक्षा 1971 और 1965 के भारत पाक युद्ध के दौरान भी दामादों की तरह की गई थी।
इनकी गुंडई, डकैती, हत्यारी आतंकी कट्टर मज़हबी मानसिकता को कभी भी तनिक न छेड़ा गया। किन्तु इसबार पाकिस्तान की कमर तोड़ने की शुरुआत ही आस्तीन के सांपों सरीखे “साम्प्रदायिक-मज़हबी-कश्मीरी” आतंकी गैंग से की गई है।
अतः कल जो होगा सो होगा… पर जो आज हो रहा है, वह पहले कभी नहीं हुआ।
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