नई दिल्ली : सऊदी अरब की सरकारी तेल कंपनी अरामको के दो बड़े ठिकानों पर शनिवार सुबह हुए ड्रोन हमले के बाद कंपनी ने वहां उत्पादन ठप कर दिया है। इसकी वजह से सऊदी अरब की इस सबसे बड़ी तेल व गैस कंपनी के उत्पादन में 50 फीसद तक की कमी आई है। समाचार एजेंसी रॉयटर्स और वॉल स्ट्रीज जर्नल के अनुसार सऊदी अरब के ऊर्जा मंत्री प्रिंस अब्दुलाजिज बिन सलमान ने शनिवार को जानकारी दीा थी कि ड्रोन हमलों की वजह से 57 लाख बैरल प्रतिदिन कच्चे तेल का उत्पादन प्रभावित हुआ है, जो कंपनी के कुल उत्पादन का लगभग आधा है। इसका असर भारत समेत दुनिया के अन्य देशों पर देखने को मिल सकता है।
ऊर्जा मंत्री प्रिंस अब्दुलाजिज ने शनिवार को बयान जारी कर जानकारी दी थि कि ड्रोन हमले की वजह से अरामको के अबकैक और खुरैस संयंत्रों में उत्पादन ठप कर दिया गया है। दोनों संयंत्रों में भीषण आग से काफी नुकसान हुआ है। कंपनी जल्द दोबारा उत्पादन शुरू करने की दिशा में काम कर रही है, लेकिन इसमें वक्त लग सकता है। साथ ही उन्होंने ये भी जानकारी दी थी कि तेल उत्पादन में हुई कटौती की भरपायी कंपनी अपने तेल भंडारों से करेगी। इस हमले की जिम्मेदारी यमन में ईरान से जुड़े हूती विद्रोहियों ने ली है। साथ ही उन्होंने चेतावनी दी है कि भविष्य में सऊदी पर हमलों के उनके अभियान में और तेजी आएगी। सऊदी पर ऐसे और हमले करने के लिए उन्होंने 10 ड्रोन तैनात किए हैं।
सबसे बड़े तेल संयंत्र हैं अबकैक और खुरैस
ड्रोन हमलों का निशाना बनी अबकैक की तेल रिफाइनरी में प्रतिदिन 70 लाख बैरल कच्चे तेल का उत्पादन होता है। अरामको के अनुसार ये दुनिया का सबसे बड़ा कच्चे तेल का स्टैबिलाइजेशन प्लांट है। वर्ष 2006 में भी इस संयंत्र पर अलकायदा ने आत्मघाती हमला करने का प्रयास किया था, जिसे सुरक्षा बलों ने नाकाम कर दिया था। ड्रोन हमले का दूसरा शिकार बना खुरैस संयंत्र, गावर के बाद देश का दूसरा सबसे बड़ा प्लांट है। इसकी शुरूआत 2009 में हुई थी। इस संयंत्र से भी प्रतिदिन 15 लाख बैरल कच्चे तेल का उत्पादन किया जाता है। साथ ही यहां करीब 20 अरब बैरल से ज्यादा तेल रिजर्व में मौजूद है।
कौन हैं ड्रोन अटैक करने वाले हूती विद्रोही
हूती विद्रोही लंबे समय से सऊदी अरब और यमन सरकार के खिलाफ युद्ध छेड़े हुए हैं। पिछले महीने भी हूती विद्रोहियों ने सऊदी अरब के शयबाह नैचुरल गैस की साइट पर इसी तरह से ड्रोन अटैक किया था। मई में भी इन्होंने सऊदी की कई तेल कंपनियों को निशाना बनाया था। माना जाता है कि ईरान हूती विद्रोहियों की मदद कर रहा है। हूती विद्रोही, 2015 से यमन सरकार के खिलाफ लड़ाई लड़ रहे हैं। 2015 में इन विद्रोहियों ने यमन के तत्कालीन राष्ट्रपति अबद्राबुह मंसूर हादी को राजधानी सना से जान बचाकर भागने को मजबूर कर दिया था। हूती विद्रोहियों का यमन की राजधानी सना समेत देश के ज्यादातर हिस्सों पर कब्जा है। हादी का समर्थन करने और हूती विद्रोहियों के खिलाफ यमन की सेना की मदद करने की वजह से सऊदी अरब भी उनके निशाने पर आ गया है। सऊदी की सेना भी हर दिन यमन में हूती विद्रोहियों के ठिकानों पर हवाई हमले कर रही है। इसका बदला लेने के लिए हूती भी सऊदी अरब पर मिसाइल दाग रहे और ड्रोन हमले कर रहे हैं। माना जाता है कि सऊदी अरब से बढ़ती प्रतिद्वंदिता की वजह से ईरान हूती विद्रोहियों की मदद कर रहा है।
सऊदी की शान है अरामको
बीबीसी के अनुसार वर्ष 2018 में अरामको की कमाई 111 अरब डॉलर थी। पिछले वर्ष अरामकों ने सऊदी अरब सरकार को 160 अरब डॉलर का राजस्व दिया था। अरामको के पास दुनिया के कुछ सबसे बड़े तेल भंडार वाले क्षेत्र हैं और कंपनी को ये तेल भंडार बहुत कम कीमत पर मिले हैं। इस कंपनी की स्थापना अमरीकी तेल कंपनी ने की थी। अरामको का मतलब है 'अरबी अमरीकन ऑयल कंपनी'। 1970 के दशक में सऊदी अरब ने इस कंपनी का राष्ट्रीयकरण कर दिया था। सऊदी के क्राउन प्रिंस सलमान अरामको को दो ट्रिलियन डॉलर की कंपनी बनाना चाहते हैं। फिलहाल ये कंपनी एक से डेढ़ ट्रिलियन डॉलर के बीच है।
महंगा हो सकता है कच्चा तेल
न्यूज एजेंसी रायटर्स के अनुसार दुनिया के प्रमुख तेल बाजार के सबसे बड़े भंडार पर हुए ड्रोन हमलों की वजह से निकट भविष्य में कच्चे तेल की कीमतों में बढ़ोत्तरी हो सकती है। इसका असर लगभग पूरी दुनिया पर पड़ेगा। सबसे ज्यादा असर उन देशों पर पड़ेगा, जो सऊदी अरब से सीधे तेल आयात करते हैं। कोलंबिया विश्वविद्यालय में सेंटर ऑन ग्लोबल एनर्जी पॉलिसी चलाने वाले और बराक ओबामा के राष्ट्रपति शासन में अमेरिकी राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद का हिस्सा रहे जेसन बोर्डोफ ने न्यूज एजेंसी से कहा, ड्रोन हमले का निशाना बना अरामको का अबकैक संयंत्र, तेल आपूर्ति के लिए दुनिया में सबसे महत्वपूर्ण स्थान है। क्षेत्र में चल रहे तनाव की वजह से तेल के दाम पहले ही पूरी दुनिया में काफी ज्यादा है। इस हमले की वजह से कच्चे तेल की कीमतें और बढ़ेंगी। सोमवार से ही इसका असर दिख सकता है। उत्पादन लंबे समय तक बंद ररहा तो तेल संकट गहरा भी सकता है।
एशिया सबसे बड़ा खरीदार
अरामकों ने पिछले साल प्रतिदिन 70 लाख बैरल क्रूड का निर्यात किया था। इसका तीन-चौथाई हिस्सा एशियाई देशों को सप्लाई किया जाता है। ऐसे में अगर तेल की कीमतें बढ़ीं या तेल संकट गहराया तो भारत समेत अन्य एशियाई देशों पर इसका सबसे पहले असर पड़ेगा। भारत जिन आठ देशों से तेल खरीदता है, उसमें सऊदी अरब दूसरे नंबर है। भारत ने वर्ष 2017-18 के बीच सऊदी अरब से 3.61 करोड़ टन और वर्ष 2018-19 में 4.03 करोड़ टन तेल का आयात किया था।
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