चंद्रयान-2 जैसे महत्वाकांक्षी मिशन के लिए साल 2016 में अपने करीबी मित्र रूस से झटका मिलने के बाद भारत अब खुद के दम पर इतिहास रचने जा रहा है। दरअसल, इस मिशन के लिए साल 2007 में भारत और रूस की स्पेस एजेंसी रॉसकॉसमॉस के बीच समझौता हुआ था। समझौते के तहत रूस को इस मिशन के अहम हिस्से पेलोड लैंडर को बनाना था, जबकि भारत को इस मिशन के लिए रोवर और ऑर्बिटर तैयार करना था।सितंबर 2008 में तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की अध्यक्षता में सरकार ने चंद्रयान-2 मिशन के लिए अपनी मंजूरी दी। अगस्त 2009 में इसरो और रॉसकॉसमॉस ने मिलकर चंद्रयान-2 का डिजाइन तैयार कर लिया और इसकी लॉन्चिंग जनवरी 2013 में तय की गई।साल 2016 में रूसी अंतरिक्ष एजेंसी रॉसकॉसमॉस द्वारा लैंडर तैयार करने में लगातार देरी किए जाने की वजह से मिशन टलता रहा। आखिरकार उसने लैंडर देने में असमर्थता जताते हुए मिशन से हाथ खींच लिया। जिसके बाद इसरो ने खुद ही लैंडर विक्रम को बनाने का फैसला किया।29 जून 2019 को अलग-अलग चरणों के लिए लॉन्चिंग व्हीकल जीएसएलवी मार्क-III के अंदर बैटरी असेंबल करने का और रोवर के साथ लैंडर विक्रम के इंटीग्रेशन का काम पूरा हुआ। साथ ही चंद्रयान-2 की लॉन्चिंग की तारीख 15 जुलाई तय की गई।
इसरो ने लैंडर और रोवर को ये नाम क्यों दिए?
चंद्रयान 2 के लैंडर का नाम डॉ. विक्रम साराभाई के नाम पर रखा गया है, जिन्हें भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम का जनक भी कहा जाता है। 'विक्रम' लैंडर का वजन 1,471 किलो ग्राम है। यह 650 वॉट बिजली जनरेट कर सकता है। इसे चंद्रमा की सीमा में एक दिन तक काम करने के अनुसार तैयार किया गया है। चंद्रमा का एक दिन पृथ्वी के 14 दिन के बराबर होता है।
विक्रम लैंडर में बेंगलुरू के पास स्थित इसरो के आईडीएसएन सेंटर से संपर्क करने की भी क्षमता है। इसके अलावा यह प्रज्ञान रोवर और ऑर्बिटर से भी संपर्क कर सकता है। अब बात करते हैं चंद्रयान-2 के रोवर प्रज्ञान की। रोवर को ये नाम किसी शख्स के नाम पर नहीं दिया गया है। फिर क्यों इसरो ने रोवर का ये नाम रखा? दरअसल इसरो और इसके वैज्ञानिक भारत की परंपरा को भी मानते हैं। हमारी भाषा संस्कृत से उन्होंने ये नाम लिया है। इसरो ने बताया है कि प्रज्ञान का अर्थ होता है बुद्धिमता। प्रज्ञान रोवर को चंद्रमा की सतह पर अपनी बुद्धिमता का परिचय देना है। वहां कई चीजों का पता लगाना है।
इसरो ने 3,84,400 किलोमीटर (2,40,000 मील) की यात्रा के लिए 'चंद्रयान 2' को तैयार करने में 960 करोड़ रुपये खर्च किए हैं। इस मिशन से पृथ्वी के एकमात्र प्राकृतिक उपग्रह चंद्रमा के रहस्यों को जानने में न सिर्फ भारत को मदद मिली बल्कि दुनिया के वैज्ञानिकों के ज्ञान में भी विस्तार होगा। जानिए अब तक के सफर के बारे में:
22 जुलाई 2019: चंद्रयान-2 को इसरो के अबतक के सबसे शक्तिशाली रॉकेट जीएसएलवी मॉर्क 3 द्वारा अंतरिक्ष में प्रक्षेपित किया गया। यह तीन चरणों वाला रॉकेट था जिसने चंद्रयान-2 को चंद्रमा के रास्ते के पास तक पहुंचाया।
24 जुलाई 2019: चंद्रयान-2 ने धरती की पहली परिक्रमा पूरी की। इस दौरान यान के इंजन को 48 सेकेंड के लिए चलाया गया था।
24 जुलाई से 6 अगस्त: इस दौरान चांद की तरफ बढ़ते हुए चंद्रयान-2 ने चार और परिक्रमा को पूरा किया। इस दौरान चंद्रयान-2 का परिक्रमा पथ 230 किमी गुणा 45163 किमी से लेकर 276 किमी गुणा 142975 किमी तक रहा।
20 अगस्त 2019: चंद्रयान-2 अर्थ ऑर्बिट से निकलकर लूनर ऑर्बिट में प्रवेश किया। लूनर ऑर्बिट में चंद्रयान-2 का पहला परिक्रमा पथ 118 किमी गुणा 4412 किमी का था।
2 सितंबर 2019: चंद्रयान-2 के ऑर्बिटर से लैंडर विक्रम सफलतापूर्वक अलग हुआ। इसके साथ ही उसने चांद की परिक्रमा शुरू कर दी। हर परिक्रमा के साथ लैंडर विक्रम चांद के नजदीक जाता रहा।
7 सितंबर 2019: इस दिन अल सुबह लैंडर विक्रम चांद की सतह को छूएगा। इस दौरान चांद की सतह को छूने के ठीक पहले विक्रम में लगे इंजन को 6.5 सेकेंड के लिए चलाया जाएगा।
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