विजय कुमार शर्मा बगहा प,च,बिहार
जेठ अमावस्या के दिन सुहागिन महिलाएं अपने सुहाग की लंबी उम्र के लिए व्रत रखते हैं इस व्रत को बट सावित्री व्रत के नाम से जाना जाता है बट यानी बरगद के पेड़ की पूजा की जाती है कहा जाता है कि वट वृक्ष की जड़ों में ब्रह्मा तने में भगवान विष्णु व डालियों के व पतियों में भगवान शिव का निवास माना जाता है व्रत रखने वाली माताएं बहने सावित्री और सत्यवान की पवित्र कथा श्रवण है। कथा में वर्णित है कि वट वृक्ष के नीचे सावित्री ने अपने पति व्रत के प्रभाव से मृत पड़े सत्यवान को पुनः जीवित किया था। मान्यता अनुसार इस व्रत को करने से पति की अकाल मृत्यु टल जाती है। बट अर्थात बरगद का वृक्ष आपकी हर पल की मन्नत को पूर्ण करने की क्षमता रखता है पीपल और वट वृक्ष की परिक्रमा का विधान है इनकी पूजा से भी कई कारण है धार्मिक दृष्टि से देखें तो बट वृक्ष दीर्घायु और अमरत्व के बोध के नाते भी स्वीकार किया जाता है मान्यता है कि वट वृक्ष की पूजा लंबी आयु सुख -समृद्धि अखंड सौभाग्य; देने के साथ ही हर तरह के कलह और संताप मिटने वाली होती है। कथा का सार यही है की सावित्री ने यमराज से लड़कर अपने पति सत्यवान के प्राणों की रक्षा किया था। मातृशक्ति में वह ताकत है कि वह जो चाहे कर सकती है इसका उदाहरण आज का व्रत वट सावित्री पूजा है।
0 टिप्पणियाँ