पुलिस अधीक्षक कुशीनगर विनोद कुमार मिश्र ने की बच्चों से अपील

पुलिस अधीक्षक कुशीनगर विनोद कुमार मिश्र ने की बच्चों से अपील


जैसे ही बच्चे प्राथमिक स्कूल उत्तीर्ण कर अगली कक्षाओं जाते है वैसे ही उनकी अपनी स्वयं की सोच विकसित होने लगती है।


और हाईस्कूल में जाते–जाते वे अपने आप को पूर्णतः समझदार और अपने जीवन का निर्णय ले सकने योग्य समझने लगते है।
जब कि वास्तव में उस प्रारम्भिक अवस्था में उनके भविष्य के लिए क्या सही है क्या गलत है, इसका निर्णय लेने के लिए जिस प्रकार का अनुभव आवश्यक होता है।
उनके पास नही होता इस प्रकार अपनी गलतफहमी में आकर कोई गलत निर्णय लेकर जीवन को गलत रास्ते पर मोड़ लेते है।
इस दुर्घटना से बचाव के लिए जहां उन्हें अपने माता-पिता की सलाह और उनका मार्गदर्शन प्राप्त करना चाहिए, वहां भी वे अपने हम उम्र एंव मित्रो की सलाह अधिक पसंद करते है जो और भी घातक होता हैमाता-पिता यदि बच्चो को किसी भी क्रियाकलाप के लिए मना करते है, रोकते है तो इसके पीछे उनकी उम्र का अनुभव रहता है। दुनिया में कोई भी अपनें माता-पिता से बढ़कर बच्चो को प्यार नहीं कर सकता। बाकी सबका प्यार किसी न किसी स्वार्थ से होता है।जबकि माँ बाप का ही प्यार बिना स्वार्थ के होता है यह बात हमे उम्र बढ़ने के साथ पता चलती है।
जो भी व्यक्ति हमें माता-पिता की मर्जी के खिलाफ कुछ भी करने को बोलता है, वहां तत्काल समझ लेना चाहिए कि वह हमारे साथ छल कर रहा है।माता-पिता हमारे लिए जो भी निर्णय लेतें हैं वही हमारे भविष्य के लिए हमेशा सही होता है। यद्यपि हमें लगता है कि हम अपना हित ज्यादा अच्छी तरह से समझ सकते हैं और माता-पिता की सलाह पर या उनकी डांट-डपट पर हमें गुस्सा भी आता है।माता-पिता हमें अगर किसी भी काम के लिए रोकते है तो उनके हृदय को भी पीड़ा होती है, किंन्तु हमें सही राह पर ही चलनें के लिए वे हमें अनुशासित रहना सिखाते हैं।दुनिया में जानें कितनें चालाक एवं धूर्त लोग हैं, जो शिकारियों की तरह लालच के जाल में फँसा लेते हैं। माता-पिता को दुनिया की समझ रहती है, वे अनुभवी होते हैं, इसलिए शिकारी की चाल को समझ लेते हैं।बच्चे इसे नहीं समझ सकते। बच्चों को लगता है मुझे जो अच्छा लगता है, उसमें बाधा डालनें वाले माता–पिता ही बुरे हैं और इसी भ्रम में वे शिकारियों के जाल में फँस जाते हैं।आज के समय में न जाने कितनी मासूम एवं भोली-भाली लड़कियों को ऐसे ही झूठे सपनें दिखाकर, मीठी-मीठी बातें करके उन्हें घर से भगाकर ले जाया जाता है।आज लाखों लड़कियाँ बड़े-बड़े शहरों में देह-व्यापार में लगायी गयी हैं, जिन्हें न समाज में कोई जगह मिलती है और न ही उनका अपना कोई समाज होता है। उनका कोई परिवार भी नहीं होता है और उनके अपनें माता पिता के परिवार वाले भी वापस नहीं रख सकते। ये लड़कियाँ जब तक नौजवान रहती हैं तब तक इन्हें मार-पीट कर, भूखा रखकर इनसे जबरन देह व्यापार कराया जाता है और इन्हें इसके बदले में कुछ नहीं मिलता। इस प्रकार की जिन्दगी जीने के कारण इन्हें तरह-तरह की ढेर सारी बीमारियाँ हो जाती हैं, जिनका इलाज भी नहीं हो पाता। फिर ये दो चार वर्षों में ही बूढ़ी दिखनें लगती हैं, तो इनसे घरेलू काम कराया जाता है और उसकी कोई मजदूरी भी नहीं मिलती। जैसे ही ज्यादा बीमार रहने लगती है उन्हें बाहर भीख माँगने को छोड़ दिया जाता है। फिर किसी जगह ये लावरिस हालत में भूखी प्यासी बीमार दशा में ही दुनिया से विदा हो जाती हैं। कितनीं लड़कियों को बाहर भी बेंच दिया जाता है। कितनी लड़कियों को जो बहकानें वाले ये कहते हैं कि तुम्हारें बिना हम जीवित नहीं रह सकते, वही लोग कुछ दिन बाद मारकर फेंक देते हैं। जाने कितनी ऐसी लाशें मिलती रहती हैं, जो पहचान में नहीं आती। ये वही लडकियाँ है जो अपनें माता-पिता की बातों को न सुनकर किसी और की बात सुनती हैं और किसी के साथ घर से भाग निकलती हैं। बच्चो को सबसे पहले अपनी शिक्षा पूरी करके अपने कैरियर पर ध्यान देना चाहिए। अपने पैरो पर खड़े होकर अपने मनपसंद जीवन साथी का चुनाव कर सकती है। फिर अच्छा, सम्मानजनक और व्यवस्थित जीवन जी सकेंगी। यदि शिक्षा पूर्ण नहीं हो पाती और माता-पिता कहीं उचित वर देखकर शादी भी कर देते हैं तो भी समाज में सम्मान के साथ और परिवार के साथ जीवन जी सकेंगी। किन्तु यदि किसी के भी कहने पर एक बार घर से बाहर निकल गयी तो समाज में हमेशा के लिए उनका सम्मान समाप्त हो जाता है। उनकी शादी में भी अनेक परेशानियाँ खड़ी हो जाती हैं। यदि भागाने वाले के साथ शादी भी कर ली तो वह शादी चल नहीं पाती और कुछ दिनों बाद उनका भविष्य खतरे में पड़ जाता है।आप सबका जीवन अनमोल है, जिसे माँ-बाप नें बड़े कष्ट से दिया है। उसे कैसे जीना है उसका चुनाव आपको करना है।सम्मान के साथ जीना है तो माँ-बाप के साथ अनुशासन में रहें। मां- बाप को भी अपनी बच्चियों में बहुत बचपन से यह भाव भरा जाना चाहिए कि वे अपना जीवन किसी की बातों में आकर नष्ट न करें। बचपन के संस्कार बच्चों के जीवन की दिसा तय करते हैं।


 


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