अब सोना की खोज के बाद यह पीड़ा उन्हें और सताने लगी है कि कहीं सरकार यहां से हटा न दें

अब सोना की खोज के बाद यह पीड़ा उन्हें और सताने लगी है कि कहीं सरकार यहां से हटा न दें

उत्तर प्रदेश के सोनभद्र जिले में एक तरफ सोना के अयस्क से भरी पड़ी सोन पहाड़ी है तो दूसरी तरफ यहां स्थानीय आदिवासियों की बदहाली भी बरकरार है। पहाड़ी के पनारी गांव निवासी महिपत  दशरथ, धनीराम हो या हंसराज सबकी एक सी कहानी है। यहां पर सोना से ज्यादा दो जून के रोटी की क‍हानी है। पहाड़ी पर सोना होने की बात से इनके मन में कोई कौतूहल नहीं। यह बात तो वह पूर्वजों से सुनते आ रहे हैं। सरकार को सोना की जानकारी से यह खुश कम उदास ज्यादा दिख रहे हैं। अब सोना की खोज के बाद यह पीड़ा उन्हें और सताने लगी है कि कहीं सरकार यहां से हटा न दें। 


मूलभूत सुविधाओं की कमी 


आजादी के सात दशक बीतने के बाद भी सड़क, बिजली, पानी के लिए लोग तरस रहे हैं। वाराणसी-शक्तिनगर मार्ग से सात किमी दूर पहाड़ों में स्थित चोपन ब्लाक के पनारी ग्राम पंचायत की आबादी बीस हजार 298 है। इस वक्त सोना अयस्क मिलने के बाद यह चर्चा में है लेकिन, यहां की स्थिति अभी भी पाषाणकालीन सरीखा है। ग्राम पंचायत के कई टोलों में अब तक बिजली नहीं पहुंच सकी। सरकारी योजना यहां दिखती नहीं। राशन की दुकानें भी यूं कागजी खानापूर्ति बनकर रह गई। बारिश के मौसम में यहां पर सर्वाधिक सर्पदंश की घटनाएं होती है। भूख व सर्पदंश से मौत अधिक होने की बात अक्सर सामने आती है। 


 जीविका का साधन औषधीय पौधे 


पहाड़ पर रहने वाले लोगों के आजीविका का साधन औषधीय पौधे हैं। सूखी लकड़ी की बिक्री से लगायत तेंदू पत्ता, चिरौजी की बिक्री कर यह पेट पालते हैं। पशुपालन जीवन की रवानी है। इसके अलावा अन्य हर्रा- बहेड़ा आदि दवा के तौर पर आकर बिक्री करते हैं।  


अंग्रेज अफसरों ने भी की थी खुदाई 


चोपन ब्लाक के पनारी ग्राम पंचायत घने जंगलों से आच्छादित है। सोन पहाड़ी बरबस अपनी ओर आकर्षित कर लेती है। स्थानीय आदिवासियों के अनुसार अंग्रेज अफसरों ने भी सोने की चाह में कई बार खुदाई करायी थी। अंग्रेज अफसरों ने ही इस पहाड़ी का नाम सोना पहाड़ी रखा था।  


दर्द की दास्तान 


पहाड़ पर रहने वाले महिपत कहते हैं कि विस्थापित का डर सता रहा है। अगर ऐसा होता है तो हम लोग कहीं के नहीं रह जाएंगे। वहीं दशरथ कहते हैं कि खनन कार्य होता है तो हम लोगों को भी इसमें काम मिलना चाहिए। लल्लू कहते हैं कि शायद इसके बाद स्थिति बदले। हंसराज कहते हैं कि रिहंद बांध निर्माण के समय हम लोगों के पूर्वजों को बहुत बड़े-बड़े सपने दिखाए गए थे, लेकिन उनके साथ क्या हुआ सबको पता है। इस बार ऐसा नहीं होना चाहिए। 


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