हाथरस केस सहित सभी अपराधों को जातीयता के बजाय न्यायिक पक्ष से देखें :आर के पाण्डेय एडवोकेट

हाथरस केस सहित सभी अपराधों को जातीयता के बजाय न्यायिक पक्ष से देखें :आर के पाण्डेय एडवोकेट


हाथरस, बलरामपुर सहित देश में कहीं पर भी अपराध घटित होना निंदनीय।


73 वर्षों की आजादी के बाद भी भारतीयता के बजाय जातिवादी चश्मा शर्मनाक।


भ्रष्टाचार, अपराध, भुखमरी, बेरोजगारी व निर्धनता के लिए विपक्ष व सत्ता पक्ष दोनो जिम्मेदार।


 


नैनी, प्रयागराज, 03 अक्टूबर 2020। विगत 73 वर्षों के आजादी के बाद भी भारतीयता के बजाय जातिवादी चश्मे का उपयोग न सिर्फ निंदनीय व शर्मनाक है वरन देश के लिए आत्मघाती कदम भी है जिस पर तुरन्त लगाम लगाने की जरूरत है।


 आज मीडिया से वार्ता में समाजसेवी अधिवक्ता आर के पाण्डेय ने उपरोक्त बातें कहते हुए राजनैतिक दलों को सलाह दी कि वे अब सुधर जाएं व जातिवादी वोट बैंक की राह के बजाय भारतीयता का रास्ता अख्तियार करें अन्यथा उपेक्षित, प्रताड़ित व प्रभावित लोग विरोध में आक्रोशित होते रहेंगे। उन्होंने कहा कि हाथरस, बलरामपुर सहित पूरे देश में कहीं पर व किसी के साथ भी आपराधिक घटना होना दुखद है परंतु उससे अधिक दुखद राजनैतिक ड्रामेबाजी है। हाथरस केस में बिना परिवार के सहमति रात के अंधेरे में पीडीता की लाश जलाना व मीडिया तक को वहां जाने से रोकना निहायत ही शर्मनाक घटना है लेकिन उससे भी अधिक निंदनीय कुछ राजनैतिक दलों द्वारा अपने मनपसंद केस में ड्रामा करना भी है।


बड़ा सवाल यह है कि हाथरस केस में परिवार से मिलने जाने का बखेड़ा खड़ा करने वाले राहुल व प्रियंका दिल्ली के निर्भया केस सहित राजस्थान, पंजाब व महाराष्ट्र में ऐसे ही दुःखद घटनाओं पर मौन क्यों रहते हैं? यह भी यक्ष प्रश्न है कि यही राजनैतिक दल पालघर सन्त बर्बर हत्या कांड व सुशांत सिंह के केस में कहां छिपे थे? आर के पाण्डेय ने सभी राजनैतिक दलों को स्पष्ट किया कि वे स्वयं के गिरेबान में झांके व आंकलन करके बताएं कि क्या वे सभी भारतीयों के लिए निष्पक्ष सोच रखते हैं? पिछली सरकारों से नाराज होकर ही मतदाताओं ने वर्तमान सरकार का गठन किया है व कुछ मुद्दों पर वर्तमान सरकार से भी असन्तुष्टि हो सकती है परंतु विपक्ष व सत्ता पक्ष यह बताये कि 73 वर्षों के लोकतंत्र के बाद भी अभी तक देश में भ्रष्टाचार, अपराध, भुखमरी, बेरोजगारी व निर्धनता के लिए क्या वे स्वयं जिम्मेदार नही हैं?


उन्होंने कहा कि विधायिका, कार्यपालिका व न्यायपालिका के लिए यह विचारणीय है कि आज लगभग हर आपराधिक वारदात में जनता सीधे इनकाउंटर की मांग क्यों करती है? कहीं ऐसा तो नही कि आम जनमानस का पूरे सिस्टम से विश्वास ही उठ गया है जिसे सही करने की जवाबदेही सिस्टम में बैठे हर व्यक्ति की है।


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