सामाजिक न्याय, शिक्षा को बढ़ावा एवं मानवता के सच्चे हितैषी थे बौद्ध भिक्षु प्रज्ञानन्द, प्रज्ञानन्द के तीसरे पुण्यतिथी पर विशेष

सामाजिक न्याय, शिक्षा को बढ़ावा एवं मानवता के सच्चे हितैषी थे बौद्ध भिक्षु प्रज्ञानन्द, प्रज्ञानन्द के तीसरे पुण्यतिथी पर विशेष


श्रावस्ती। डॉ0 भीमराव अंबेडकर को बौद्ध धर्म की दीक्षा देने वाले बौद्ध भिक्षु प्रज्ञानन्द का सोमवार को तीसरी पुण्यतिथि मनाई गई। इस दौरान बौद्ध भिक्षु प्रज्ञानन्द के अनुयायियों ने उनके अंतेष्टी स्थल चाइना बुद्ध मन्दिर पहुंच कर उन्हे अश्रुपूरित श्रद्धांजलि अर्पित की। बताते चलें कि प्रज्ञानन्द का परिनिर्वाण लम्बी बीमारी के बाद 30 नवम्बर 2017 को लखनऊ के मेडिकल कॉलेज मे हो गया था। 30 नवम्बर से लेकर 15 दिसम्बर तक उनके पार्थिव शरीर को लखनऊ के रिसालदार पार्क स्थित बुद्ध विहार में दर्शनार्थ रखा गया। जहाँ पर राष्ट्रपति राम नाथ कोविन्द, उप राष्ट्रपति वैंकैया नायडू, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य, पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव एवं मायावती, कैबिनेट मंत्री स्वामी प्रसाद मौर्य, सांसद दद्दन मिश्र समेत केन्द्र एवं प्रदेश सरकार के तमाम सांसद, मंत्री व विधायक तथा कई राजनीतिक पार्टियों के मुखिया समेत तमाम देशी-विदेशी उपासक भी पहुंच कर उनके अंतिम दर्शन किये थे। सोलह दिसम्बर को उनके पार्थिव शरीर का शव यात्रा निकाल कर लखनऊ से श्रावस्ती लाया गया था। जहाँ पर सत्रह दिसम्बर 2017 को पूरे राजकीय सम्मान के साथ अन्तिम संस्कार किया गया था। इस मौके पर श्रीलंका के राष्ट्रपति के प्रतिनिधि के रुप वहाँ के संस्कृति मन्त्री रमेश जय विक्रम परेरा, भारत के केन्द्रीय कैबिनेट मंत्री राम दास अठावले, प्रदेश के उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य, कैबिनेट मंत्री स्वामी प्रसाद मौर्य, राज्यमंत्री श्रीमती अनुपमा जायसवाल, स्थानीय सांसद दद्दन मिश्र समेत देश विदेश के तमाम माननीय मौजूद रहे थे।


प्रज्ञा नन्द ने कई देशों का भ्रमण कर बौद्ध धर्म का किया था प्रचार प्रसार


बौद्ध भिक्षु प्रज्ञानन्द ने बौद्ध धर्म की शिक्षाओं को देश विदेश मे फैलाने के लिए कई देशों का भ्रमण किया जिसमें इंग्लैंड, आस्ट्रेलिया, कोरिया, जापान, नेपाल, वर्मा, भूटान, बांग्लादेश, श्रीलँका आदि देशो की यात्रा कर विदेशों मे भी बौद्ध धर्म का पताका लहराया। जहाँ पर अब प्रज्ञानन्द के करोड़ों उपासक हैं, सात भाषाओं के जानकार भिक्षु प्रज्ञानन्द पहली विदेश यात्रा अपने सर्व प्रथम विदेशी बौद्ध उपासक बीआर सांपला के बुलावे पर इंग्लैण्ड गये थे। जिसके बाद से इनके विदेश यात्राओं का क्रम अनावरत जारी रहा।


प्रज्ञानन्द का संछिप्त परिचय


बौद्ध भिक्षु प्रज्ञानन्द का जन्म श्रीलंका के गलगेदर गाँव में 18 दिसम्बर 1927 को हुआ था। जो महज 13 वर्ष की आयु में 1941 में भारत भ्रमण पर आये थे। इस दौरान इन्होंने श्रावस्ती का भी भ्रमण किया था। भारत आने पर इनको यहाँ की संस्कृति और धार्मिक स्थल इतने रास आये कि वह फिर भारत के हीं होकर रह गये। प्रज्ञानन्द जब पूर्ण रुप से भारत में हीं रहने का मन बना लिए, तो इन्होंने लखनऊ के लाल कुंआ के रिसालदार पार्क स्थित बुद्ध विहार के प्रमुख भिक्षु बोधानन्द की शरण में गये और 1942 में उन्ही से दीक्षा लेकर बौद्ध भिक्षु बन गये। बौद्ध भिक्षु बनने के बाद से वें लगातार लखनऊ से श्रावस्ती आते-जाते रहे। 1948 में भिक्षु बोधानन्द के परिनिर्वाण के बाद प्रज्ञानन्द रिसालदार बुद्ध विहार के प्रमुख भिक्षु के रुप में कार्यभार संभाल कर धर्म प्रचार में लग गये। इनके उपदेश इतने भावपूर्ण होते थे कि सुनने वाले लोग मन्त्र मुग्ध हो जाया करते थे। 1948 तथा 1951 में जब बाबा साहब डॉक्टर भीमराव अम्बेडकर लखनऊ के रिसालदार पार्क स्थित बुद्ध विहार आये थे, तब उन्होने भी बौद्ध भिक्षु प्रज्ञानन्द के उपदेशों को सुनकर इतने प्रभावित हुए थे कि 1956 में जब उनको नागपुर में बौद्ध धर्म की दीक्षा लेनी हुई, तो उन्होंने सात सदस्यीय बौद्ध भिक्षुओं की टीम में भिक्षु प्रज्ञानन्द को भी शामिल किया था। उन सात बौद्ध भिक्षुओं मे प्रज्ञानन्द सबसे कम उम्र के तथा 2017 तक एक मात्र जीवित बौद्ध भिक्षु थे। प्रज्ञानन्द को 1960 में भारत सरकार की ओर से भारत की नागरिकता मिल मिल गयी। जिसके बाद से प्रज्ञानन्द अधिकतर समय श्रावस्ती स्थित चाइना बुद्ध मन्दिर में बिताने लगे। जहां पर देशी विदेशी उपासकों की भारी भीड़ उमड़ती रहती थी।



शिक्षा का अलख जगाने में भी प्रज्ञानन्द का रहा सराहनीय योगदान


बौद्ध भिक्षु प्रज्ञानन्द जब पहली बार श्रावस्ती आये उस समय यहाँ का शैक्षिक स्तर न के बराबर था। ऐसे में इनके मन मे एक जिज्ञासा उत्पन्न हुयी कि श्रावस्ती में बुद्ध मन्दिर के साथ-साथ शिक्षा का भी मन्दिर खोला जाय। इसी सोच के साथ उन्होंने जेतवन विहार के निकट श्रीलंका बुद्ध मन्दिर का निर्माण कराया जो आज पर्यटकों के आस्था का केन्द्र है। श्रीलंका बुद्ध मन्दिर निर्माण के बाद बुद्ध की शिक्षाओं को जन-जन तक पहुचाने के लिए श्रावस्ती के चाइना बुद्ध मन्दिर मे एक भिक्षु प्रशिक्षण एवं साधन केन्द्र की भी स्थापना की। जहाँ से पढ़ कर भिक्षु सुमन रत्न, भिक्षु प्रज्ञासार, भिक्षु उपनंद, भिक्षु नंद रत्न, भिक्षु ज्ञाना लोक, भिक्षु संघ रक्षित, भिक्षु धम्म प्रिये, भिक्षु देवेंद्र, भिक्षु प्रियनंद एवं भिक्षु अशोक आदि ने पढ़ाई पूरी कर दुनिया भर में बौद्ध धर्म के प्रचार-प्रसार में जुटे हुए हैं। इसके बाद प्रज्ञानन्द ने स्थानीय लोगों को शिक्षित करने के लिए श्रावस्ती मे जेतवन इण्टर कालेज की स्थापना की। जो शिक्षा के सफलता के मामले नित नई ऊंचाइयों को छू रहा है। साथ हीं चौधरी राम बिहारी बुद्ध इण्टर कालेज श्रावस्ती के स्थापना मे भी प्रज्ञानन्द का सराहनीय योगदान बताया जा रहा है।


प्रज्ञानन्द के अंतिम संस्कार में एक साथ बरसे थे आँसू और फूल


भिक्षु प्रज्ञानन्द के अन्तिम संस्कार में उमड़े जन सैलाब में हर कोई अपने धर्म गुरु का एक झलक पाने के लिए बेताब था। लोग पुष्प वर्षा कर अपने धर्म गुरु को अन्तिम विदाई दे रहे थे। साथ हीं लोगों के आखों से आसुओं का सैलाब भी थमने का नाम नही ले रहा था। ये आँसू उस समय सैलाब बन गये जब राजकीय सम्मान के साथ उन्हें विदाई देने के लिए जवानों के द्वारा मातमी धुनों के बीच अन्तिम सलामी दी जा रही थी। इसके बाद जैसे हीं पार्थिव शरीर को बौद्ध भिक्षुओं के द्वारा चिता की ओर लेकर बढ़ा गया, लोग फूट-फूट कर रोने लगे थे। जो तुतलाते जुबान से प्रज्ञानन्द अमर रहें। बौद्ध धर्म की क्या पहचान-मानव मानव एक समान आदि नारों के बीच उन्हें विदा किया गया। इस मौके पर श्रीलंका, चीन, जापान, कोरिया, कम्बोडिया, भूटान, म्यामांर, नेपाल, थाईलैंड समेत दर्जनों देशों के बौद्ध भिक्षु भी मौजूद रहे।


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