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खुद नहीं करीबियों के लिए व्‍यूह रच रहे दिग्‍गज,आरक्षण सूची ने बिगाड़ दी यह गणित...



उत्तर प्रदेश में चुनाव पंच-प्रधान, क्षेत्र पंचायत और जिला पंचायत सदस्य पद पर जीत के लिए महीनों से तैयार किए गए चक्रव्यूह जंग शुरू होने से पहले ही टूट गए।यह लोगों ने व्यूह को अभेद बनाए रखने की योजना बनाई थीं या जिन्होंने हर हाल में व्यूह को भेदने की तरकीबें तलाश रखी थी वे देखते रह गए। सशक्त ‘हथियार’ आरक्षण ने बिना किसी शोर-शराबे के व्यूह के हर फाटक को तोड़ दिया। गंवई सरकार पर वर्षों से काबिज छत्रपों के पांव में आरक्षण ने ऐसी बेड़ियां डाल दी कि अब वे इस चुनावी समर में खुद उतर ही नहीं पाएंगे। यही वजह है कि गंवई सरकार पर प्रत्यक्ष न सही अप्रत्यक्ष रूप से ही काबिज रहने की मंशा पाल रखे छत्रपों ने अब नए सिरे से व्यूह रचना शुरू कर दी है। 


खुद मैदान में नहीं उतरेंगे लेकिन हर तीर चलाएंगे ताकि उनका ‘अपना’ मैदान मार ले।जिले की कई ऐसे ग्राम प्रधान-क्षेत्र पंचायत या जिला पंचायत सदस्य पद रहे हैं जिन पर वर्षों से दबंगों ने कब्जा जमा रखा था। चुनाव कोई भी रहा, चाल कैसी भी चलनी पड़ी लेकिन गंवई सरकार की बागडोर दबंगों ने अपने हाथों में थामे रखी। वर्ष 2021 के आसन्न पंचायत चुनाव में भी जीत हासिल करने के लिए इन छत्रपों ने महीनों पहले फिल्डिंग शुरू कर दी थी। चुनाव जीतने के लिए गांवों में मनमुताबिक खेमे तैयार कर लिए थे। इसके लिए साम-दाम-भेद-दंड हर नीति लगा ली थी। कई तो आश्वस्त हो गए थे कि इस बार भी जीत उन्हीं की होगी। उनकी जीत का अंतर इतना अधिक होगा कि विरोधी उनके नजदीक नहीं फटक पाएंगे। खेमे की डोर मजबूत बनाए रखने के लिए महीनों पहले से दावतों का दौर चला रहा था। कुछ ने चुनाव में बाद मतदाताओं को अपने खर्चे से धार्मिक स्थलों को घुमाने का भरोसा दिला रखा था तो किसी शासन की योजनाओं का लाभ दिलाने में उनका नम्बर तय कर डाला था।आरक्षण ने छत्रपों का खेल बिगाड़ दिया। अब वे मैदान से ही बाहर हो गए। पर इन छत्रपों ने हर नहीं मानी है।


 गंवई सरकार पर काबिज रहने के लिए आरक्षण वर्ग के अपने करीबी को मैदान में उतारने का फैसला कर डाला। उसे जीत दिलाने के लिए किस खेमे को मिलाना है और किस खेमे से दूरी बनानी है, अब नए सिरे से व्यूह रचना शुरू कर दी है। हालांकि छत्रपों की यह चाल कहीं-कहीं उल्टी पड़ रही है। वर्षों से साथ चल रहे लोग छत्रपों की वेवफाई की वजह से उससे दूरियां बनाने लगे हैं जिसकी वजह से उनकी ताकत कमजोर पड़ने लगी है। पर छत्रपों ने तो मान लिया है। यह ठान लिया है....गवंई सरकार में दखल रखेंगे। यही है कि वे ‘मुखिया’ उसे बनाना चाहते हैं जो उनका अपना रहे। उनके इशारे पर ही ‘मुहर’ उठाए और रखे।

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