चुनावी भंवर में फंसा किसानो का रुपया , सत्ता पक्ष के विधायक को भी आने लगी छींके, लेकिन...

चुनावी भंवर में फंसा किसानो का रुपया , सत्ता पक्ष के विधायक को भी आने लगी छींके, लेकिन...


गोला गोकर्णनाथ - खीरी। जी हां यह कोई गुलरिया चीनी मिल नही है जहां विधायक जी ने जाकर खुले आसमान के तले प्रबंध तंत्र और मिल अधिकारियों को नाकों चने चबाने पर मजबूर कर दिया। जब गोला चीनी मिल की बारी आई तो उल्टा उनसे आश्वासन लेकर मामला 10 नवंबर तक टाल दिया गया। कहावत है सैंया भए कोतवाल हमें डर काहे का। प्रबंध तंत्र पूरी तरह से मनमानी पर उतारू है वह भी सिर्फ मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के रहते। समझ में नहीं आता प्रधानमंत्री 14 दिन विलंब के बाद भुगतान के साथ ब्याज देने को कहा था। मगर यहां सब उल्टा पुल्टा। आज जब 27 अक्टूबर को घेरा- डेरा डालने की नौबत आई। उससे एक दिन पहले ही 11 नवंबर तक मामले को दो पर्चियों का भुगतान देकर शांतिपूर्वक गुपचुप बैठके आयोजित होने का हवाला देकर बजाज मिल चालू होने से पहले अभय दान दे दिया गया।


किसानों की किस्मत शायद साथ नहीं दे रही है अन्यथा यह चीनी मिल अब तक पूरा भुगतान कर देती। लोग कहते हैं कि बंदरिया दंडी के बल पर नाचती है बिल्कुल उसी भाति उत्तर प्रदेश सरकार और उसके नुमाइंदे बजाज के इशारे पर चल रही है वह जैसा चाहे मनमानी करने पर उतारू है अपना ही पैसा फसा कर उधार कर्जा लेकर गन्ना किसान अपने ही पैसों के लिए भीख मांगने पर उतारू है। वह यह भूल रहे हैं कि वह किसान अन्नदाता है। वह कभी मिट नहीं सकता मिटा जरूर सकता है। मिल प्रबंध तंत्र सब धान 22 पसेरी समझ रहे हैं। इसकी कीमत सरकार को चुकानी होगी। मिल प्रबंध कों चाहिए येन -केन -प्रकारेण पुराना बकाया वह ब्याज का पैसा इस नवीन सत्र के चालू होने से पहले ही भुगतान करवा दे वही बेहतर होगा।


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