कोरोना विजेताओं के जीने का ढंग बदला

कोरोना विजेताओं के जीने का ढंग बदला


सरवन शर्मा कि विषेश रिपोर्ट 

प्रयागराज, 15 दिसम्बर 20 - कोविड-19 संक्रमण के आंकड़ों में दर्ज होती कमी सकारात्मक उम्मीद पैदा कर रही है। एक तरफ लोगो ने जहां इस वैश्विक महामारी से बचने के लिए मास्क और दो गज से दूरी को अपने जीवन का हिस्सा बना लिया है वहीं शहर के कई कोरोना विजेताओं ने अपनी जीवन शैली ही बदल डाली है। कोरोना विजेताओ ने कोविड-19 से पहले और वर्तमान के जीवन में क्या बदलाव किया है। पेश है एक रिपोर्ट....  

सेनीटाइज़ होकर ही घर जाते हैं: विनोद यादव

कोरोना विजेता जीवन ज्योति क्षेत्र के चौकी इंचार्ज विनोद यादव (33) अगस्त महीने में ड्यूटी के दौरान संक्रमित हो गए थे। विनोद ने बताया कि ‘वाहन चेकिंग, पेट्रोलिंग के दौरान विभाग के सभी सहयोगी सोशल डिस्टेन्सिंग का बेहद ख्याल रखते हैं। मैं बाहर का कोई भी खुला सामान अब नहीं खाता हूं। क्षेत्र के दुकानदारों को कोविड प्रोटोकाल मानने के लिए सख्त हिदायत है। ड्यूटी के बाद मैं और मेरे सहयोगी सरस्वती अस्पताल स्थित कवर्ड सेनीटाइज़र मशीन से पूरी तरह सेनीटाइज़ होकर ही घर जाते हैं।

संक्रमित की पहचान मुश्किल: प्रभात कुसुम गुप्ता  

15 साल से लाइलाज बीमारी सारकॉइडोसिस के लास्ट स्टेज से गुजरते हुए जनपद के अल्लापुर क्षेत्र की प्रभात कुसुम गुप्ता (65) ने बीते अगस्त में कोरोना को मात दी है। कुसुम के फेफड़े लगभग 90% तक निष्क्रिय हैं। कुसुम ने बताया कि कोरोना संक्रमण के बाद से मेरी जीवन शैली बदल गई है। 24 घंटे की दिनचर्या जैसे रहन सहन, खान-पान सभी में बड़ा बदलाव आया है। अब मित्रों, पड़ोसियों से बहुत जरूरी होने पर ही मुलाकात करती हूं। बिना मास्क लगाए परिवार के किसी सदस्य से घर में भी नहीं मिलती हूं। मैंने इक्षाशक्ति व अहतियात के भरोसे भले कोरोना को मात दे दी है लेकिन थकान, अनिद्रा, बदहज़मी जैसी समस्याएं बरकार हैं। 

अब अहतियात दोगुना बरतता हूँ : जीत पाल सिंह

कमलाकुंज अपार्टमेंट के कोरोना विजेता जीत पाल सिंह (54) ने बताया कि ‘बिज़नस पार्टनर्स के साथ मीटिंग के लिए कोरोना-काल में अक्सर दूसरे राज्य व शहर आना-जाना जारी रहा। इस बीच मैं व मेरे सहयोगी सभी ने प्रशासनिक दिशा-निर्देशों का पालन किया। पर मैं कैसे संक्रमित हो गया यह मेरे लिए हैरत का विषय था। अभी मैं स्वस्थ हूँ पर प्रयास यही रहता है कि ऑनलाइन माध्यम से बिज़नस पार्टनर्स से समन्वय स्थापित करूं। अतिआवश्यक होने पर ही कहीं जाता हूँ वह भी पूरी एहतियात के साथ। विपत्तियाँ अक्सर दुख के साथ कई सुख की संभावनाएं उजागर करती हैं, ऐसे में जीवन में सकारात्मक पहलू हमें तलाशने चाहिए।

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