रामसनेहीघाट, बाराबंकी। गरीब मरीजों के इलाज के लिए अंतिम पायदान माने जाने वाले केजीएमयू के चिकित्सक कितने गैर जिम्मेदार हैं इसका अंदाजा मौत के सन्निकट बताकर घर वापस लौटाये गये एक मरीज को देखकर लगाया जा सकता है।जिसे डाक्टरों ने टीबी के कारण फेफड़ा खत्म होने एवं खून न होने का दावा कर एक सप्ताह का मेहमान बताकर वापस कर दिया था और परिजन उनकी बात पर यकीन मानकर गोदान कराकर मरने की राह देख रहे थे आज वह स्वस्थ हो रहा है।
जानकारी के मुताबिक समाज का एक बड़ा वर्ग धनाभाव में प्राइवेट चिकित्सा का लाभ नहीं ले पाता है और वह बीमार होने पर सरकारी अस्पताल की शरण में जाता है।पीएससी सीएचसी सरकारी स्वास्थ्य सेवाओं का प्राथमिक अस्पताल होता है और गरीब लोग सबसे पहले अपना इलाज कराने यहाँ पहुंचते हैं।गंभीर मरीजों को सीएचसी तथा जिला अस्पताल या मेडिकल कॉलेज तक जाने के लिए एम्बुलेंस सेवा भी निःशुल्क मिल जाती है।सरकारी स्वास्थ्य सेवाओं में मेडिकल कालेज को फिलहाल के लिए अंतिम पायदान माना जाता है और मरीज इसे बड़ा आधुनिकतम सुविधाओं वाला अस्पताल मानते हैं।मेडिकल कालेज के चिकित्सकों की राय को मरीज भगवान की राय मानते हैं और वहाँ पर जबाब मिलने के बाद मान लेते हैं कि अब मौत होना तय है।यह भी माना जाता है कि मेडिकल कालेज से बेहतर विश्वसनीय जांच व इलाज अलग नहीं होता है और चिकित्सक इलाज करने में कोई चूक या लापरवाही नहीं करते हैं तथा सही राय देते हैं।मेडिकल कालेज से वापस लौटे मरीज को देखने के बाद लगता है कि चिकित्सक कितने कर्तव्य परायण हैं।
मामला क्षेत्र के ग्राम पूरे पंडित महुलारा से जुड़ा हुआ है।इस गाँव के रहने वाले हनुमान प्रसाद तिवारी का बड़ा पुत्र श्रीकांत गत दिनों अचानक बेहोश हो गया था और उसे परिजन अचेतावस्था में सीएचसी ले गए जहां से उसे जिला एवं जिले से मेडिकल कॉलेज लखनऊ में भर्ती कराया था।जहाँ पर चिकित्सकों द्वारा कफ की जांच न करके सिर्फ एक्सरे व ब्लैड की जांच कर टीबी का इलाज शुरू किया गया और बता दिया गया कि उसके दोनों फेफड़े समाप्त हो चुके हैं तथा वह सिर्फ चार छः दिन का ही मेहमान है। दो दिन इलाज करने के बाद उसे आक्सीजन लगाकर अस्पताल से यह कहकर घर वापस कर दिया गया था कि सिर्फ एक हफ्ते का मेहमान है और परिजनों ने डाक्टर भगवान के कथनानुसार उनकी बात पर यकीन करके मृत्यु पूर्व होने वाला गोदान करवा दिया और उसकी मृत्यु की राह देखने लगे थे।इसी बीच कुछ जानकर लोगों की सलाह पर उसे एक निजी अस्पताल में ले जाकर खून चढ़वाकर घर पर उसका इलाज शुरू कर दिया गया।फलस्वरूप मरीज का स्वास्थ्य ठीक होने लगा और वह आज बोल व लोगों को पहचान ही नहीं बल्कि चलने फिरने एवं खाना भी खाने लगा है। जो घर वाले उसकी मौत का इंतजार कर रहे थे वह अब उसके पूर्ण स्वस्थ होने की उम्मीद लगाए उसकी सेवा व देखभाल करने में जुट गए हैं।
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